फ्रंट पेज न्यूज, डिजिटल डेस्कः फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी ‘आमलकी एकादशी’या ‘रंगभरी एकादशी’ के नाम से जानी जाती है । जो इस वर्ष 3 मार्च को मनाई जाएगी । इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के साथ-साथ आंवला के पेड़ की पूजा करने का विधान है। एकादशी तिथि विष्णुप्रिया तो है ही,इसके अलावा इस एकादशी का महत्त्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि इस दिन ही भगवान शिव माता पार्वती से विवाह के उपरांत पहली बार अपनी प्रिय काशी नगरी आए थे और वहां सभी देवताओं ने शिव-पार्वती का गुलाल उड़ाकर स्वागत किया था।
पूजाविधि
इस दिन जगत के पालनहार श्री विष्णुजी की पूजा उनके परशुराम जी के स्वरुप में की जाती है।इस दिन साधक को प्रातः व्रत का संकल्प लेकर परशुराम जी की मूर्ति या तस्वीर की पूजा बड़ी ही श्रद्धा से करनी चाहिए। साथ ही आंवले के वृक्ष का पूजन आदि करके ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ‘ मन्त्र का उच्चारण करते हुए वृक्ष की यथाशक्ति परिक्रमा करनी चाहिए । अगर आसपास वृक्ष उपलब्ध नहीं हो तो आंवले का फल भगवान विष्णु को प्रसाद स्वरुप अर्पित करें,तत्पश्चात घी के दीपक या कपूर से श्री हरी कि आरती उतारें।
महत्व
इस व्रत को करने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है और सहस्त्र गोदानों का फल प्राप्त कर लेता है । यह एकादशी समस्त यज्ञों को करने से भी अधिक फल देने वाली है ।पुराणों में भगवान विष्णु ने कहा है- कि जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं,उनके लिए आमलकी एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है । मान्यता है कि आमलकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन आंवले के पौधे को लगाने से जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।अतः यह सब पापों को हरने वाला परम पूज्य वृक्ष है।
आंवले के पूजन का रहस्य
आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का खास विधान है । पद्म पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के थूकने पर उनके मुख से चन्द्रमा के सामान कांतिमान एक बिंदु पृथ्वी पर गिरा ,उसी से आमलकी (आंवला) का महान दिव्य वृक्ष उत्पन्न हुआ ,जो सभी वृक्षों का आदिभूत कहलाता है । भगवान विष्णु ने सृष्टि की रचना के लिए इसी समय अपनी नाभि से ब्रह्मा जी को उत्पन्न किया । देवता,दानव,गन्धर्व,यक्ष,नाग तथा निर्मल अन्तःकरण वाले महर्षियों को ब्रह्मा जी ने जन्म दिया । सभी देवताओं ने जब इस पवित्र वृक्ष को देखा तो उनको बड़ा विस्मय हुआ,इतने में आकाशवाणी हुई-”महर्षियो ! यह सर्वश्रेष्ठ आमलकी का वृक्ष है जो विष्णु को अत्यंत प्रिय है । इसके स्मरण मात्र से गोदान का फल मिलता है,स्पर्श करने से दोगुना और फल भक्षण करने से तिगुना फल प्राप्त होता है । इसके मूल में विष्णु,उसके ऊपर ब्रह्मा,तने में रूद्र,शाखाओं में मुनिगण,टहनियों में देवता,पत्तों में वसु,फूलों में मरुदगण एवं फलों में समस्त प्रजापति वास करते हैं।
आमलकी एकादशी तिथि
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 2 मार्च को सुबह 6 बजकर 39 मिनट से प्रारंभ होकर 3 मार्च को सुबह 9 बजकर 1 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार आमलकी एकादशी 3 मार्च 2023 को मनाई जाएगी।